कविता तिवारी का देशप्रेम
कथानक व्याकरण समझें तो सुरभित छंद हो जाए हमारे देश में फिर से सुखद मकरंद हो जाए मेरे ईश्वर मेरे दाता ये कविता माँगती तुझसे युवा पीढ़ी सँभल कर के विवेकानंद हो जाए बिना मौसम हृदय कोकिल से भी कूजा नहीं जाता जहाँ अनुराग पलता हो वहाँ दूजा नहीं जाता विभीषण रामजी के भक्त हैं ये जानते सब हैं मगर जो देशद्रोही हों उन्हें पूजा नहीं जाता जिसे सींचा लहु से है वो यू हीं खो नहीं सकते सियासत चाह कर विषबीज हरगिज बो नहीं सकती वतन के नाम जीना और वतन के नाम मर जाना शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती ~ कविता तिवारी