मां : ममता की मूरत

कैसे कोई भुला सके हैं ममता की उस गात को
नौ महीने अपने भीतर रखा है जिसने लाल को
जन्म से पहले जिनके भीतर था मेरा संसार
उनके लिए अब हैं हमही, उनका पूरा संसार

हमारी एक छींक भी जिनके लिए होती तीर समान
कैसे कोई चुका सके है इस अपार स्नेह का उधार
बचपन में जिनकी आंचल की छांव थी अपार
जवानी में वो आंचल कैसे हो सके है  बेकार
चाहे कोई हो जाए कितना भी अमीर धनवान
चोट लगने पर सबसे पहले आती मां की याद
कैसे लोग भुला देते हैं मां की ममता महान को

छोड़ आते हैं कैसे उसे वृद्धाश्रम की कारागार

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