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अब ना रहा वो बचपन सुनहरा

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क ल सारी रात मैं यूं ही करवटें बदलता रहा आंखें बंद थी मेरी पर, मैं रात भर जगता रहा थे याद आ रहें मुझे दादाजी की कहानियां पर मैं बिछाने पर यूं ही अचेत सा पड़ा रहा सब सो रहें थे चैन से पर,यूं ही जगता रहा कमरे की खिड़कियों से मैं चांद को निहारता रहा खल रही थी कमी मुझे दादीजी के आंचल की जिसकी छाव में, था मैंने अपना बचपन बिताया अचानक से पड़ी आंखों पर सूरज की तेज़ किरण उठकर बैठ गया मैं अपनी आंखें मलता हुआ सहसा मेरे कानों में एक आवाज़ महसूस हुई मानो कोई कह रहा हो,शुरू हो गई है जवानी      "अब ना रहा वो बचपन सुनहरा" Like, Comment,Share and Follow.

Wake Up

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Wake up brothers and sisters The saviour of the nation We have come out all the way Knowing we all will die Why the fear is So shaky in the heart? Yes, myself too In the impact of this hard step Overwhelmed with anxiety and fear With the prayer to almighty Praising the spirit of truth Touchily from this frail body I am bidding farewell Yet longing for life Though birth is followed by death So fond of to accomplice My desired mission  written by Irom Chanu Sharmila . You can read all about the " Iron Lady of Manipur " here.

परिभाषा दोस्ती की

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प्रतिस्पर्धा होती है, पर प्रतिद्वंदिता नहीं। मतभेद होते हैं ,पर, लड़ाईयां नहीं। राम रहीम होता है ,पर, हिन्दू मुस्लिम नहीं, यह दोस्ती है साहब जाति धर्म की राजनीति नहीं। अमीरी फकीरी होती है, पर भेद भाव नहीं। मेधावी मंदबुद्धि होते हैं, पर ईर्ष्याभाव नहीं। कर्ण,अर्जुन होते हैं, पर शकुनि कोई नहीं। दोस्ती वो महाभारत है साहब जहां कृष्ण होते हैं, दुर्योधन नहीं।। Competition happens,but No rivalry There are differences but No fight Ram Rahim is there but No hindu muslim This is the friendship dear Not politics of caste and religion Rich and poors are there but No discrimination Both meritorious and blunt exist But, no jealousy Karna and Arjun live together Without any Shakuni Friendship is that Mahabharata Where there is Krishna but no Duryodhana Like,Comments & Share

मां : ममता की मूरत

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कैसे कोई भुला सके हैं ममता की उस गात को नौ महीने अपने भीतर रखा है जिसने लाल को जन्म से पहले जिनके भीतर था मेरा संसार उनके लिए अब हैं हमही, उनका पूरा संसार हमारी एक छींक भी जिनके लिए होती तीर समान कैसे कोई चुका सके है इस अपार स्नेह का उधार बचपन में जिनकी आंचल की छांव थी अपार जवानी में वो आंचल कैसे हो सके है  बेकार चाहे कोई हो जाए कितना भी अमीर धनवान चोट लगने पर सबसे पहले आती मां की याद कैसे लोग भुला देते हैं मां की ममता महान को छोड़ आते हैं कैसे उसे वृद्धाश्रम की  कारागार

कविता तिवारी का देशप्रेम

कथानक व्याकरण समझें तो सुरभित छंद हो जाए हमारे देश में फिर से सुखद मकरंद हो जाए मेरे ईश्वर मेरे दाता ये कविता माँगती तुझसे युवा पीढ़ी सँभल कर के विवेकानंद हो जाए बिना मौसम हृदय कोकिल से भी कूजा नहीं जाता जहाँ अनुराग पलता हो वहाँ दूजा नहीं जाता विभीषण रामजी के भक्त हैं ये जानते सब हैं मगर जो देशद्रोही हों उन्हें पूजा नहीं जाता जिसे सींचा लहु से है वो यू हीं खो नहीं सकते सियासत चाह कर विषबीज हरगिज बो नहीं सकती वतन के नाम जीना और वतन के नाम मर जाना शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती ~ कविता तिवारी

गिरना भी अच्छा है, औकात का पता चलता है

गिरना भी अच्छा है, औकात का पता चलता है। बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को, अपनों का पता चलता है। जिन्हें गुस्सा आता है, वो लोग सच्चे होते हैं। मैंने झूठों को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है। सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है।

मतलबी दुनिया

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कभी अपना था जो आज पराया हो गया बदला फिर भी कुछ नहीं बस 'पट्टा''बदल गया बड़े किस्म किस्म के लोग हैं यहां बड़ी सतरंगी है ये कहकशां मिलते तो हम अब भी है उनसे पर, अब वो पहले वाली बात कहां जहां हो, जैसी हो, वहीं....वैसे ही रहना तुम...! तुम्हें पाना जरुरी नहीं, तुम्हारा होना ही,काफी है मेरे लिये..