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कविता तिवारी का देशप्रेम
कथानक व्याकरण समझें तो सुरभित छंद हो जाए हमारे देश में फिर से सुखद मकरंद हो जाए मेरे ईश्वर मेरे दाता ये कविता माँगती तुझसे युवा पीढ़ी सँभल कर के विवेकानंद हो जाए बिना मौसम हृदय कोकिल से भी कूजा नहीं जाता जहाँ अनुराग पलता हो वहाँ दूजा नहीं जाता विभीषण रामजी के भक्त हैं ये जानते सब हैं मगर जो देशद्रोही हों उन्हें पूजा नहीं जाता जिसे सींचा लहु से है वो यू हीं खो नहीं सकते सियासत चाह कर विषबीज हरगिज बो नहीं सकती वतन के नाम जीना और वतन के नाम मर जाना शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती ~ कविता तिवारी
मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर
मं दिर-मस्जिद-गिरजाघर ने बाँट लिया भगवान को, धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इंसान को. मंदिर-मस्जिद… हिन्दू कहता मंदिर मेरा, मंदिर मेरा धाम है, मुस्लिम कहता मक्का मेरा अल्लाह का इमान है. दोनों लड़ते, लड़ लड़ मरते, लड़ते लड़ते ख़तम हुए. दोनों ने एक दूजे पर न जाने क्या क्या ज़ुल्म किये. किसका ये मकसद है, किसकी चाल है ये जान लो, धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इन्सान को. मंदिर-मस्जिद.. नेता ने सत्ता की खातिर कौमवाद से काम लिया, धरम के ठेकेदार से मिलकर लोगों को नाकाम किया, भाई बंटे टुकड़े-टुकड़े में, नेता का ईमान बढा वोट मिले और नेता जीता शोषण को आधार मिला. वक़्त नहीं बीता है अब भी, वक़्त की कीमत जान लो. धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इंसान को. मंदिर-मस्जिद… प्रजातंत्र में प्रजा को लूटे ये कैसी सरकार है, लाठी गोली ईश्वर अल्लाह ये सारे हथियार हैं, इनसे बचो और बच के रहो और लड़कर इनसे जीत लो, हक है तुम्हारा चैन से रहना अपने हक को छीन लो, अगर हो तुम शैतानी से तंग, ख़त्म करो शैतान को, धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटो इंसान को. मंदिर-मस्जिद….
Keep it up!!
ReplyDeletethank u
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